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कृत्रिम बुद्धिमता: वरदान या अभिशाप!!

कृत्रिम बुद्धिमता: वरदान या अभिशाप!!

हम में से ज्यादातर व्यक्ति, जो फीचर फोन्स इस्तेमाल करते हैं वे कृत्रिम-बुद्धिमत्ता के सबसे सरल उदाहरण से दो-चार हो चुके हैं और जिसे वे गुगल असिस्टेंट के रूप में देख चुके हैं। अर्थात आप अपने फोन में मौजूद माइक्रो प्रोसेसर (मिनी कम्प्यूटर) को मौखिक आदेश देते हैं और वह आपके द्वारा इच्छित विषय वस्तु को खोजकर आपको दर्शाता है। 
इसी तरह सीरी, एलेक्सर और कोरटाना भी है। अगर हम इसे यूं समझें कि एक कम्प्यूटर की मेमोरी में विभिन्न विषयों की जानकारी एवं उनके आधार पर निर्णय लेने की क्षमता विकसित कर दें तो वह किसी डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड एकाउन्टेंट इत्यादि के तौर पर कार्य कर सकते हैं।
चाहे आप जिज्ञासु हों, उत्साहित हों या कृत्रिम बुद्धिमता के उदय से भयभीत हों यह एक उभरती हुई तकनीक के रूप में पहले से ही चिकित्सा, विज्ञान, इन्जीनियरिंग, मार्केटिंग इत्यादि अनेक क्षेत्रों में देखा जाने लगा है। कम्प्यूटर क्षमताओं का विस्तार कर रहे हैं, विभिन्न उत्तेजनाओं से सीख रहे हैं और मानव की तरह प्रतिक्रियाएं दे रहें हैं जैसे पहले कभी नहीं किया। 
अनिवार्य रूप से कृत्रिम बुद्धिमता कम्प्यूटर को अपने आप सीखने और सोचने की अनुमति देती हैं। लेकिन यह वास्तव में कैसे कार्य करता है? यह सब एक विशिष्ट लक्ष्य को पूरा करने के लिये ए.आई. (आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स) डिजाइन करने से शुरू होता है। वहां से इसे उपलब्ध डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है। क्योंकि यह सीखता है कि दिए गए लक्ष्य को सर्वोत्तम तरीके से कैसे प्राप्त किया जाएगा। जब यह सीखने के स्तर तक पहुंच जाता है तो अति हर चीज की खतरनाक होती है। यह बुद्धिमान मशीन बनाने का विज्ञान और इन्जीनियरिंग है जो इसे महत्वपूर्ण बनाता है। लिहाजा इसका सकारात्मक सदुपयोग वांछनीय है। इसके उलट, अगर इसका दुरुपयोग हानिकारक लक्ष्यों को साधने हेतु किया जाए तो नुकसान की संभावनाएं असीमित हैं। यहां इसकी तुलना दशानन से करना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मानव बुद्धि के अनुकारण के साथ, मशीनों द्वारा प्रक्रियाओं, जो विशेष रूप से कम्प्यूटर सिस्टम है, में सूचना के अधिग्रहण और इसके उपयोग के नियमों को सीखना शामिल है। तर्क- अनुमानित या निश्चित निष्कर्ष और आत्म-सुधार के लिये नियमों का उपयोग (पालन) करता है। तदनुसार यह उम्मीद की जाती है कि उस डेटा का इस्तेमाल अपनी दम पर लक्ष्य हासिल करने के लिए किया जाएगा। फिर सभी डेटा का विश्लेषण करने के  बाद ए.आई. जो पाता है उसके आधार पर भविष्यवाणियां करता है। 
आगे बढ़ते हुए यह अपने दृष्टिकोण को बेहतर बनाने के लिए जो सीखता है उसका उपयोग करता है। हम कह सकते हैं कि यह होशियार और होशियार होता जाता है। यह एक वरदान भी साबित हो सकता है और अभिशाप भी। जबकि हर कोई ए.आई. के विभिन्न फायदों और नुकसानों पर सहमत नहीं हो सकता है पर इसका पदार्पण हो चुका है और यह यहां रुकने के लिये है। इसीलिए आप इसके बारे में जो भी सीख सकते हैं उसे सीखने से आपको अभी या निकट भविष्य में इसे अपने लाभ के लिये उपयोग करने में मदद मिलेगी।
- सुधीर चौहान

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