
Oil की कीमतों में तीन साल की सबसे बड़ी बढ़त दर्ज की गई
ईरान-इजराइल तनाव से वैश्विक आपूर्ति पर असर पड़ा है और भारत भी हो सकता है प्रभावित
नई दिल्ली। ईरान और इज़राइल के बीच चल रहे तनाव ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों को झकझोर दिया है। बीते दिनों कच्चे तेल की कीमतों में एक ही दिन में बीते तीन वर्षों की सबसे बड़ी बढ़त दर्ज की गई। तेल की कीमतों में उछाल ने भारत समेत कई तेल आयातक देशों के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। बताया जा रहा है कि इस संघर्ष का वैश्विक आपूर्ति पर भी असर पड़ा है और भारत भी प्रभावित हो सकता है। अगर ईरान पर इजराइल और अमेरिका का दबाव बढ़ता है तो वह तेल की आपूर्ति रोक सकता है। खाड़ी क्षेत्र के अन्य उत्पादक देशों की तेल साइट्स भी ईरानी मिसाइलों की रेंज में हैं। इससे सप्लाई ठप हो सकती है और कीमतों में अप्रत्याशित तेजी आ सकती है, जिसका असर भारत पर भी होगा। ईरान वैश्विक क्रूड ऑयल आपूर्ति में लगभग 2 फीसदी का योगदान देता है।
खरग द्वीप के ज़रिए ईरान का 90 फीसदी तेल निर्यात होता है लेकिन हालिया सैटेलाइट इमेज से शिपमेंट में गिरावट सामने आई है। वहीं, होर्मुज जलडमरूमध्य – जहां से 20 फीसदी वैश्विक तेल आता-जाता है, अभी चालू है लेकिन खतरा मंडरा रहा है। तेल संकट की स्थिति में दुनिया की उम्मीदें सऊदी अरब और यूएई पर टिकी होंगी। दोनों मिलकर 30-40 लाख बैरल अतिरिक्त उत्पादन कर सकते हैं। सऊदी अरब पहले ही 12.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन उत्पादन कर रहा है और इसके पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल भंडार है। भारत अपनी तेल जरूरतों का 85-88 फीसदी आयात करता है, मुख्य रूप से इराक, सऊदी अरब, रूस और यूएई से। यदि होर्मुज मार्ग बाधित होता है तो न केवल आयात बिल बढ़ेगा, बल्कि चालू खाता घाटा और महंगाई में भी इजाफा हो सकता है। अगर हालात युद्ध में बदलते हैं तो ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है, जो दुनिया की एक-तिहाई तेल और 20 फीसदी नेचुरल गैस का रूट है। इससे कच्चे तेल की कीमत में 20 फीसदी तक उछाल आ सकता है। भारत के कुल तेल आयात का लगभग 45-50 फीसदी इसी रास्ते से आता है।
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