Data Centers पर अक्षय ऊर्जा का निवेश बढ़ा
नई दिल्ली। एक अध्ययन में कहा गया है कि चैट जीपीटी के किसी सवाल के लिए गूगल सर्च की तुलना में लगभग 10 गुना ज्यादा बिजली की जरूरत होती है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की बढ़ती रफ्तार और एआई वर्कलोड की जरूरत पूरी करने के लिए डेटा सेंटर की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। इससे विश्लेषकों लगता है कि डेटा सेंटरों की बिजली की खपत बढ़ सकती है। उद्योग के जानकारों का मानना है कि बिजली के पारंपरिक स्रोत हर साल महंगे होते जा रहे हैं और उनमें से अधिकतर बिजली के वैकल्पिक स्रोतों में निवेश करेंगे। कुछ लोगों को लगता है कि उनका अक्षय ऊर्जा उपयोग कुल ऊर्जा जरूरतों का 80 फीसदी तक हो जाएगा। डेटा सेंटर किसी राज्य में वाणिज्यिक दरों पर बिजली खरीदते हैं और आमतौर पर वह दर उच्चतम स्लैब में होती है।
हीरानंदानी समूह के डेटा सेंटर का लक्ष्य अगले तीन से पांच वर्षों में अपनी 80 फीसदी से अधिक बिजली अक्षय ऊर्जा से हासिल करने का है। इसी तरह हैदराबाद के कंट्रोलएस ने साल 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के जरिये 100 फीसदी बिजली हासिल करने का लक्ष्य रखा है। फिलहाल डेटा सेंटरों के लिए बिजली का मुख्य स्रोत सरकारी बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) से मिलने वाली बिजली है, जो मुख्यतः कोयला और ताप बिजली होती है। डेटा सेंटर अपनी खुद की नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित करने में निवेश कर रहे हैं, जिसे बाद में सरकारी पावरग्रिड को भेजा जाता है। इससे कंपनियां यह सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें अपने संचालन के लिए निर्बाध बिजली मिलती रहे।
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