Jaivardhan Singh के दो सवालों से चारों खाने चित्त हुई भाजपा
भोपाल/ मध्य प्रदेश की सियासत में इन दिनों यह सवाल तेजी से उभर रहा है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह के बीच अनबन और अबोला है? क्या विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दोनों के बीच आई दरार कम कर सकते हैं? ये दो ऐसे सवाल हैं, जिन्होंने शीत लहर के बीच मप्र का सियासी तापमान बढ़ा दिया है! दोनों ही सवालों के सूत्रधार हैं राघौगढ़ विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री जयवर्धन सिंह! कांग्रेस की तरफ से हुई प्रश्नों की इस पहरेदारी की परिधि बनी है मप्र की विधानसभा!
शीतकालीन सत्र के पहले दिन जयवर्धन सिंह ने भाजपा की “डबल इंजन” सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि प्रदेश में मक्का खरीद को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने केंद्र को कोई प्रस्ताव ही नहीं भेजा! जबकि अक्टूबर 2025 में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं राज्य सरकार से प्रस्ताव मांग चुके थे। उनके इस आरोप के बाद सदन में बैठे सत्ता पक्ष के मंत्री और विधायक चुप्पी साधे नजर आए, क्योंकि इन सवालों को लेकर उनके पास कोई उत्तर ही नहीं था!
कांग्रेस के तेजतर्रार युवा नेता और लगातार तीसरी बार के विधायक जयवर्धन सिंह ने जैसे ही मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री के बीच समन्वय की कमी का सवाल सदन में उठाया, सत्ता पक्ष के खेमे में सन्नाटा पसर गया! सरकार के बचाव से बचते नजर आए भाजपाई मंत्री उस समय नि:शब्द हो गए, जब राघौगढ़ विधायक ने विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से आग्रह कर डाला कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल की इस कमी को अब वे ही दूर कर सकते हैं! लिहाजा मप्र के किसानों की परेशानी को दूर करने के लिए उन्हें तत्काल पहल करनी चाहिए!
जयवर्धन सिंह ने किसानों की वास्तविक स्थिति का हवाला देते हुए खंडवा के एक किसान का मामला भी सदन में पेश किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 में किसान की 21 एकड़ सोयाबीन फसल बर्बाद हो गई थी और उसने 6000 रुपए का प्रीमियम भर रखा था, लेकिन बीमा कंपनी ने मात्र 1274 रुपए का भुगतान किया। इस उदाहरण के जरिए फसल बीमा योजना की बढ़ती खामियों का प्रमाण देते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार केवल कागजों में ही योजनाओं को सफल बताती है, लेकिन जमीन पर किसानों को न्याय नहीं मिल पाता!
बहस का सबसे महत्वपूर्ण और राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षण तब आया, जब जयवर्धन सिंह ने दावा किया कि राज्य और केंद्र के बीच संवादहीनता का सीधा नुकसान किसानों को उठाना पड़ रहा है। इस टिप्पणी के बाद सत्ता पक्ष के खेमे में सन्नाटा पसर गया और कई मंत्री सदन में उपस्थित होने के बावजूद प्रतिक्रिया देने से बचते दिखाई दिए।
इसी दौरान जयवर्धन सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की भूमिका का उल्लेख करते हुए उनसे आग्रह किया कि वे केंद्र में कृषि मंत्री भी रहे हैं, इसलिए किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए उनका हस्तक्षेप बेहद आवश्यक है। विपक्ष की इस अपील ने सदन के माहौल को गंभीर बना दिया, क्योंकि यह पहली बार था जब विधानसभा अध्यक्ष को सीधे एक 'सियासी मध्यस्थ' की भूमिका निभाने के लिए कहा गया है!
इन घटनाक्रमों ने सदन का माहौल बदला, साथ ही प्रदेश की राजनीति में भी कई तरह की अटकलों को जन्म दे दिया है। विपक्ष लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि भाजपा की “डबल इंजन” सरकार अब दो हिस्सों में विभाजित नजर आ रही है और कृषि जैसे महत्वपूर्ण विषय पर समन्वय की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है! विधानसभा में हुई बहस ने ऐसे तमाम मुद्दों को अब नए राजनीतिक आयाम भी दिए हैं। किसानों की समस्याओं, फसल बीमा योजना की विफलताओं और मक्का खरीद पर प्रस्ताव न भेजने जैसे आरोपों के बीच अब राजनीतिक विमर्श का केंद्र यह पूछना हो गया है कि क्या वाकई राज्य और केंद्र के बीच संवाद की गाड़ी पटरी से उतर चुकी है और यदि हां, तो क्यों और यह भी कि इसे फिर से पटरी पर लाने की जिम्मेदारी कौन निभाएगा?
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