Dark Mode
60 साल से Arunachal में रह रहे चकमा समुदाय को नहीं मिली नागरिकता

60 साल से Arunachal में रह रहे चकमा समुदाय को नहीं मिली नागरिकता

तीन पीढियों का जन्म अरुणाचल में


गुवाहाटी। चकमा समुदाय के लोग अरुणाचल में 1964 में शरणार्थी के रूप में आए थे। भारत सरकार द्वारा उन्हें पुनर्वासित किया गया था। इस समुदाय की तीन पीढियों ने यहीं पर जन्म लिया है।1964 से यह समुदाय बिना किसी अधिकार के यहां पर रह रहा है। इस समुदाय के लोगों को मुफ्त राशन, शिक्षा, छात्रवृत्ति और नौकरी की पात्रता नहीं है।केंद्रीय मंत्री और अरुणाचल के लोकसभा सांसद किरेन रिजीजू ने इन्हें मेहमान बताया है। जिसके कारण इस समुदाय के लोग भड़क गए हैं।


पाकिस्तान से शरणार्थी के रूप में आए चकमा और हाजोंग मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तानके नागरिक थे। 1971 की लड़ाई के बाद वह बांग्लादेश बन गया। जो उस समय पाकिस्तान का हिस्सा था। वहां के चटगांव पहाड़ी इलाकों के निवासी थे। वहां पर इनका धार्मिक उत्पीड़न हो रहा था।इन्हें भाग कर भारत आना पड़ा था। वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश में इनकी आबादी अब एक लाख से अधिक है।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं माना सरकार ने
सुप्रीम कोर्ट ने 1996 और 2015 मे अरुणाचल में बसे दोनों समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने के पक्ष में आदेश दिया है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी 2022 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार चकमा हाजोंग को नागरिकता और उनके हक देने के लिए अनुशंसा की है। इसके बाद भी अभी तक इन्हें नागरिकता नहीं दी गई है। केंद्रीय मंत्री किरण रिजीजू के बयान से एक बार फिर अरुणाचल में अशांति की हालात पैदा हो रहे हैं।


अरुणाचल से पलायन के लिए मजबूर
पिछले 60 साल से चकमा समुदाय यहां पर रह रहा है। तीन पीढियों का जन्म यहां हुआ है। इसके बाद भी अभी तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश हो जाने के बाद भी ना तो इन्हें नागरिकता दी गई है। नाही नागरिक अधिकार मिल रहे हैं। जिसके कारण यह आसपास के राज्यों में पलायन करते हैं।

Comment / Reply From

Newsletter

Subscribe to our mailing list to get the new updates!