
America की टेक्नोलॉजी और इंडस्ट्री को घुटनों पर लाना चाहता है चीन
बीजिंग। बीते हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक खास फोन कॉल हुआ। चर्चा थी क्या चीन रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों में ढील देगा? लेकिन इस बातचीत से कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। उल्टा चीन ने अप्रैल से इन मैग्नेट्स को अपने ‘कंट्रोल लिस्ट’ में डालकर पूरी सप्लाई चेन पर सरकार की मुहर लगा दी है। यानि अब कोई भी कंपनी इन मैग्नेट्स को चीन से बाहर नहीं ले जा सकती जब तक उसे सरकार से लाइसेंस न मिले। और इस प्रक्रिया में इतना वक्त और पेच है कि अमेरिका और जापान की कंपनियों को अपने प्रोडक्शन तक रोकने पड़ गए हैं। यूरोप में तो कुछ ऑटो पार्ट कंपनियों की फैक्ट्रियां अस्थायी रूप से बंद हो गई हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या ड्रैगन ने ‘रेयर अर्थ’ को नया मिसाइल बना लिया है जिससे वह अमेरिका की टेक्नोलॉजी और इंडस्ट्री को घुटनों पर लाना चाहता है? हाल की घटनाओं को देखें तो जवाब साफ है… हां। और सिर्फ अमेरिका नहीं, जापान और यूरोप भी इस ‘चाइनीज़ चंगुल’ में उलझ चुके हैं। चीन का यह प्लान डोनाल्ड ट्रंप के ट्रेड वॉर के बीच आया है।
चीन की यह चाल कोई अचानक बनी रणनीति नहीं है। बीते कई सालों से बीजिंग अमेरिका की तरह अपना एक्सपोर्ट कंट्रोल सिस्टम बना रहा था। अब उसने उसका ट्रायल शुरू कर दिया है – और पहला टारगेट है ‘रेयर अर्थ मैग्नेट्स’। ये वही खनिज हैं जो इलेक्ट्रिक कारों से लेकर हाईटेक हथियारों तक की जान होते हैं। और चीन इस समय दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक ही नहीं बल्कि लगभग एकाधिकार रखने वाला खिलाड़ी है। रेयर अर्थ वो दुर्लभ खनिज हैं जो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, सैटेलाइट्स, गाइडेड मिसाइल्स और मोबाइल फोन जैसे उपकरणों में लगते हैं। चीन दुनिया में इनका सबसे बड़ा प्रोसेसर है। करीब 70 प्रतिशत माइनिंग और 90 प्रतिशत रिफाइनिंग चीन के पास है। ये वही ताकत है जिससे चीन अब अमेरिका को उसी के तरीके से जवाब दे रहा है।विशेषज्ञों के मुताबिक चीन अब केवल एक्सपोर्ट कंट्रोल नहीं कर रहा, बल्कि ग्लोबल सप्लाई चेन की नब्ज पकड़ने की कोशिश कर रहा है। जो भी विदेशी कंपनी इन मैग्नेट्स का इस्तेमाल करती है उसे अब चीन से इजाजत लेनी होगी।
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