Kubbra Sait ने सियांग नदी पर पूरा किया राफ्टिंग अभियान
मुंबई । हाल ही में अभिनेत्री और होस्ट कुब्रा सैत ने अरुणाचल प्रदेश की दुर्गम धरती से निकलने वाली सियांग नदी पर एक असाधारण राफ्टिंग अभियान पूरा किया। यह यात्रा भारत-चीन सीमा के बेहद करीब स्थित तूतिंग कस्बे से शुरू हुई। जब भारतीय सेना के जवानों ने सियांग नदी के किनारे कुब्रा और उनकी टीम को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया, उसी क्षण यह साफ हो गया था कि यह कोई सामान्य रोमांच नहीं है। सामने थी करीब 180 किलोमीटर लंबी उग्र जलधारा, सात दिनों की लगातार राफ्टिंग और वह सपना, जो पिछले सात वर्षों से साकार होने की प्रतीक्षा कर रहा था। सियांग नदी अपनी विशालता और अनिश्चित स्वभाव के लिए जानी जाती है। यह ऐसी नदी नहीं, जिसे आसानी से काबू में किया जा सके। चौड़ी, तेज़ और हर पल बदलते मिज़ाज वाली इस नदी में राफ्ट पर कदम रखना, कुब्रा के लिए अपनी सहज सीमाओं से बाहर निकलने जैसा था। सियांग ज़िले की गहराइयों में, मोबाइल नेटवर्क और आधुनिक सुविधाओं से दूर, जीवन अचानक बेहद सरल हो गया। दिन का पूरा क्रम बस चप्पू चलाने, सांस लेने, भोजन करने, विश्राम करने और फिर उसी प्रक्रिया को दोहराने तक सिमट गया। हर सुबह नदी से उठती धुंध किसी जीवित प्राणी की तरह चारों ओर फैल जाती थी और दोनों ओर खड़े पहाड़ मानो मौन प्रहरी बनकर इस यात्रा के साक्षी होते थे। कभी रैपिड्स खेल-खेल में बहा ले जाते, तो कभी वे पूरी एकाग्रता और सामंजस्य की मांग करते। घंटों तक चप्पू चलाना शारीरिक सहनशक्ति की परीक्षा लेता, वहीं नदी का बर्फीला पानी छोटी-सी चूक पर सज़ा देने से भी नहीं चूकता। शो में अपने साथ एक अलग ही जादू लेकर आती थीं। नदी किनारे ऐसे अछूते तटों पर कैंप लगाए जाते, जो मानो किसी और समय से उधार लिए गए हों।
तारों से भरा आसमान रात को रोशन कर देता और अलाव की लपटों के बीच साझा भोजन एक गहरे जुड़ाव का एहसास कराता। इन पलों में कुब्रा ने खुद को अपेक्षाओं, चिंताओं और रोज़मर्रा की भागदौड़ से मुक्त महसूस किया। कुब्रा सैत कहती हैं कि यह केवल सात दिनों का राफ्टिंग अभियान नहीं था, बल्कि बारह दिनों का ऐसा अनुभव था, जिसने इंसानी समय-सारिणी को चुनौती दी। उनके मुताबिक, ज़मीन ने सम्मान सिखाया और नदी ने विनम्रता के बदले उन्हें जीवन को देखने का एक दुर्लभ नजरिया दिया। अभियान खत्म होने के बाद भी सियांग का प्रभाव उनके भीतर बना रहा। इस यात्रा ने न सिर्फ उनकी शारीरिक सीमाओं को परखा, बल्कि उनके भीतर के संसार को भी चुपचाप बदल दिया। सियांग की यह यात्रा ताकत दिखाने की नहीं, बल्कि उसे समझने की थी। तेज़ रफ्तार और दिखावे से भरी दुनिया में इस नदी ने कुब्रा सैत को धैर्य, उपस्थिति और दृष्टिकोण का महत्व सिखाया। यह रोमांच भले ही कुछ दिनों का रहा हो, लेकिन इसका असर स्थायी है, जो हमेशा यह याद दिलाता रहेगा कि सबसे अर्थपूर्ण यात्राएं वही होती हैं, जो इंसान को भीतर से बदल देती हैं। बता दें कि कुब्रा सैत को आमतौर पर एक सफल अभिनेत्री और होस्ट के रूप में पहचाना जाता है, लेकिन कैमरों की चमक और रेड कार्पेट की चकाचौंध से दूर उनकी एक अलग ही पहचान है। उनके भीतर एक ऐसी बेचैन और खोजी आत्मा बसती है, जो अनजानी राहों, चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों और प्रकृति की विराटता के बीच खुद को ढूंढने निकल पड़ती है।
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