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  • Saturday, 06 December 2025
भारत आने से डर रहा Rana, चली नई चाल प्रत्यर्पण से बचने फिर की याचिका दाखिल

भारत आने से डर रहा Rana, चली नई चाल प्रत्यर्पण से बचने फिर की याचिका दाखिल

वाशिंगटन। मुंबई हमलों का गुनहगार तहव्वुर राणा भारत आने से बचने के लिए नई नई चाल चल रहा है। राणा ने अपने प्रत्यर्पण से बचने के लिए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के सामने अर्जी दाखिल की है। इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस ने उसकी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद राणा सीधे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास पहुंचा गया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इसकी पूरी डिटेल मौजूद है जिसमें तहव्वुर राणा की अर्जी को 4 अप्रैल, 2025 को होने वाली कॉन्फ्रेंस के लिए सुप्रीम कोर्ट के जजों को सौंप दिया गया है। राणा ने भारत प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मांग करते हुए अपनी अर्जी नए सिरे से दायर की है। कोर्ट के आदेश के मुताबिक राणा ने अपील में कहा है कि उसने जस्टिस के सामने दायर की गई अपनी आपातकालीन अर्जी का नवीनीकरण किया है। इसमें भारत प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मांग की गई थी। अब यह अनुरोध किया गया है कि नए आवेदन को चीफ जस्टिस के सामने पेश किया जाए। इस महीने की शुरुआत में जस्टिस ने राणा के उस आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसमें भारत प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मांग की गई थी।

राणा ने अपने आवेदन में तर्क दिया था कि कई कारणों से वह भारत में मुकदमे का सामना करने के लिए ज्यादा दिन जीवित नहीं रहेगा। राणा ने अपील के जरिए कहा है कि अगर रोक नहीं लगाई गई तो कोई समीक्षा नहीं होगी और अमेरिकी अदालतें अधिकार क्षेत्र खो देंगी और याचिकाकर्ता जल्द मर जाएगा। राणा ने दावा किया कि अगर उसे भारत प्रत्यर्पित किया गया है, तो पाकिस्तानी मूल का मुसलमान होने के कारण उसके साथ अत्याचार की प्रबल संभावना है। राणा पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है। उसका जन्म पाकिस्तान में हुआ है। वह पेशे से डॉक्टर है। उसने पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर की सेवा दे चुका है। वह मुंबई हमले का मास्टर माइंड डेविड हेडली का करीबी बताया जाता है। ये भी कहा जाता है राणा ने ही मुंबई में मौत के तांडव के लिए फाइनेंस किया था। राणा ने 13 नवंबर को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के एक दिन बाद 21 जनवरी को शीर्ष अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया था।

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