Dark Mode
ज्यादा नींद आने के कारण

ज्यादा नींद आने के कारण

दुनियाभर में करीब तिहाई जनसंख्या अनिद्रा की शिकार है। पर, ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें हर समय नींद आती रहती है और किसी काम में मन नहीं लगता। अगर आपके साथ ऐसा है तो यह हाइपरसोम्निया हो सकता है! हाइपरसोम्निया एक स्लीप डिसॉर्डर है, जिसमें रात में बहुत नींद आने के बाद भी सुबह उठने में भी परेशानी होती है। इससे पीड़ित लोगों को सारा दिन नींद आती रहती है, चाहे काम कर रहे हों या बात कर रहे हों। दिक्कत तब होती है कि जब दिन में 1-2 बार झपकी लेने के बाद भी तरोताजा महसूस नहीं करते। यह जीवन के लिए घातक स्थिति नहीं है, लेकिन इससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है और कई रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
दो तरह के स्लीप डिसॉर्डर
प्राइमरी हाइपरसोम्निया : यह सोने और जागने की क्रिया को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के तंत्र में खराबी आने से होता है।
सेकेंडरी हाइपरसोम्निया : यह उस स्थिति का परिणाम होता है, जिसके कारण गहरी नींद नहीं आती और थकान होती है। जैसे स्लीप एप्निया, इसके कारण रात में सांस लेने में परेशानी होती है और कई बार नींद खुलती है। कई दवाओं, कैफीन और एल्कोहल का अधिक मात्रा में सेवन भी हाइपरसोम्निया का कारण बन सकता है। थाइरॉएड और किडनी की परेशानियों में भी ऐसा होता है।
इन लक्षणों से पहचानें
हाइपरसोम्निया का सबसे प्रमुख लक्षण है लगातार थकान बनी रहना। अधिक नींद लेने के बाद भी सुबह उठने में परेशानी होना। इसके अलावा ऊर्जा की कमी, चिड़चिड़ापन, एंग्जाइटी, भूख न लगना, सोचने और बोलने में परेशानी होना, बेचैनी व चीजों को याद न रख पाना आदि लक्षण देखने को मिलते हैं।
कारण
स्लीप डिसॉर्डर नैक्रोप्लास्टी (दिन में उनींदापन महसूस करना) और स्लीप एप्निया (रात में नींद में सांस रुक जाना)।
लगातार कई रातों तक नींद पूरी न हो पाना। शिफ्ट जॉब में काम करना
मोटापा और शारीरिक सक्रियता की कमी
नशीली दवाओं व शराब का सेवन
कैफीन का अधिक मात्रा में सेवन
सिर में चोट लग जाना या कोई न्यूरोलॉजिकल समस्या
कुछ दवाओं का असर
आनुवंशिक कारण
कई मानसिक और शारीरिक समस्याएं जैसे अवसाद, हाइपो-थाइरॉएडिज्म और किडनी संबंधी रोग।
जांच व उपचार
हर समय बहुत नींद आती है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर आपके सोने-उठने के समय, अवधि, खानपान की आदतों, भावनात्मक समस्याओं और स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पूछेगा। डॉक्टर कुछ जरूरी टेस्ट कराने के लिए भी कह सकता है जैसे ब्लड टेस्ट, कम्प्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन (सीटी स्कैन), पोली-सोमनोग्रॉफी (स्लीप टेस्ट)। अधिक गंभीर मामलों में इलेक्ट्रोइन्सेफैलोग्राम (ईईजी) कराने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा नींद के दौरान हृदय की धड़कनों, सांसों और मस्तिष्क की गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। मरीज की स्थिति के अनुसार ही उन्हें दवाएं दी जाती हैं।
क्या होता है नुकसान
डायबिटीज: हाइपरसोम्निया से डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग हर रात में नौ घंटे से अधिक सोते हैं, उनमें डायबिटीज की आशंका उन लोगों की तुलना में 50 फीसदी अधिक होती है, जो सात घंटे की नींद लेते हैं।
डिप्रेशन: अत्यधिक सोने से अवसाद के लक्षण और गंभीर हो सकते हैं। दिन में उनींदापन और किसी काम पर ध्यानकेंद्रित न कर पाना अवसाद को और बढ़ा देता है।
मोटापा: अध्ययन कहते हैं कि जो लोग लगातार छह वर्षों तक हर रात 9-10 घंटे की नींद लेते हैं, उनमें मोटापे का खतरा, उन लोगों की तुलना में 21 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जो 7-8 घंटे की नींद लेते हैं।
इसके अलावा अधिक सोने वालों में सिरदर्द व कमर दर्द की समस्या भी अधिक होती है। कम उम्र में मृत्यु का खतरा भी बढ़ता है।
कैसे बचें
नियत समय पर सोएं।
आठ घंटे से अधिक न सोएं।
नियमित व्यायाम करें।
एल्कोहल व कैफीन का सेवन कम करें।
पौष्टिक खाना खाएं।
योग और ध्यान करें।
गैजेट्स का इस्तेमाल कम करें।

 

Comment / Reply From

Newsletter

Subscribe to our mailing list to get the new updates!