
Bacteria और वायरस भी बदल रहे हैं अपना स्वरूप
वाशिंगटन। कई बैक्टीरिया ऐसे हो चुके हैं जो एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति रेजिस्टेंट यानी प्रतिरोधी बन गए हैं। इसका अर्थ है कि वे उन दवाओं से नहीं मरते, जिनसे पहले आसानी से खत्म हो जाते थे। यह स्थिति बेहद खतरनाक है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह समस्या अक्सर तब बढ़ती है जब लोग बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक दवाएं लेते हैं या दवा का कोर्स अधूरा छोड़ देते हैं। इससे बैक्टीरिया धीरे-धीरे उन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। परिणामस्वरूप, वही एंटीबायोटिक जो कभी असरदार थीं, अब बेअसर हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हालिया रिपोर्ट इस स्थिति की गंभीरता को उजागर करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में हर 6 में से 1 बैक्टीरियल संक्रमण अब एंटीबायोटिक के प्रति रेजिस्टेंट हो चुका है। 2018 से 2023 के बीच एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस 40प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक संयोजनों में बढ़ा है और यह हर साल औसतन 5 से 15प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। यह रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ के ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस एंड यूज सर्विलांस सिस्टम द्वारा 100 से अधिक देशों से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट में 22 प्रकार की एंटीबायोटिक दवाओं की प्रभावशीलता का विश्लेषण किया गया, जो यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, गट इंफेक्शन, ब्लड स्ट्रीम इंफेक्शन और गोनोरिया जैसी बीमारियों के इलाज में उपयोग की जाती हैं।
इनमें आठ प्रमुख बैक्टीरियल रोगजनक शामिल हैं — एसीनेटोबैक्टर, एसचेरिचिया कोली, क्लेब्सिएला न्यूमोनिया, नाइसैरिया गोनोरिया, सालमोनेला, शिगेला, स्टैफिलोकोकस ऑरियस और स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया। इन सभी पर बढ़ता एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस अब वैश्विक स्वास्थ्य संकट बन चुका है। रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में लगभग हर तीन में से एक संक्रमण एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट पाया गया है, जबकि अफ्रीकी क्षेत्र में यह आंकड़ा हर पांच में से एक है। कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियों वाले देशों में यह खतरा सबसे अधिक है क्योंकि वहां समय पर निदान और उपचार की सुविधाएं सीमित हैं। ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया जैसे ई.कोली और के.पनेमोनिय अब ब्लड स्ट्रीम संक्रमणों में सबसे खतरनाक साबित हो रहे हैं। ये संक्रमण सेप्सिस, ऑर्गन फेलियर और यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकते हैं। वर्तमान में 40प्रतिशत से अधिक ई.कोली और 55 प्रतिशत से ज्यादा के. पनेमोनिय तीसरी पीढ़ी की सेफालोस्पोरिन दवाओं के प्रति रेजिस्टेंट हो चुके हैं, जबकि अफ्रीकी देशों में यह दर 70प्रतिशत से ऊपर पहुंच गई है। चिंताजनक बात यह है कि अब कार्बापेनेम और फ्लुओरोक्विनोलोन जैसी शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स भी इन बैक्टीरिया पर असर नहीं दिखा पा रही हैं।
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