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  • Tuesday, 02 September 2025
वीजा और इमिग्रेशन नीतियों की वजह से Britain भी खो रहा लोकप्रियता

वीजा और इमिग्रेशन नीतियों की वजह से Britain भी खो रहा लोकप्रियता

भारतीय वर्कर्स और छात्र अर्थव्यवस्था और यूनिवर्सिटीज में देते हैं अहम योगदान

लंदन। अमेरिका की तरह अब ब्रिटेन भी अपनी कड़ी वीजा और इमिग्रेशन नीतियों की वजह से भारतीय छात्रों और वर्कर्स के बीच लोकप्रियता खोता जा रहा है। लंबे समय से भारतीय छात्र के लिए अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देश शिक्षा और नौकरी के लिए पहली पसंद है, लेकिन हाल के आंकड़े बताते हैं कि बदलती परिस्थितियों और सख्त नियमों ने इनकी रुचि कम कर दी है। मीडिया रिपोर्ट में ब्रिटिश गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2023 में भारतीय वर्कर्स को सबसे ज्यादा 1,62,655 वर्क वीजा जारी किए गए थे, लेकिन 2024 में इनकी संख्या घटकर केवल 81,463 रह गई, यानी करीब 50 फीसदी की गिरावट। हेल्थ एंड केयर वर्कर कैटेगरी में सबसे ज्यादा कमी दर्ज की गई है। वहीं, स्किल्ड वर्कर वीजा में भी बड़ी गिरावट आई। कुल जारी किए गए वर्क वीजा में 2024 में भारतीयों का हिस्सा केवल 22 फीसदी ही रहा है। यही हाल भारतीय छात्रों के साथ भी है। 2023 में 1,59,371 छात्र वीजा भारतीयों को जारी किए थे, लेकिन 2024 में यह संख्या सिर्फ 92,355 रह गई। यह 42 फीसदी की गिरावट दर्शाती है। इसके पीछे कई कारण हैं।

ब्रिटेन ने इमिग्रेशन सिस्टम को सख्त बनाने नीतिगत बदलाव किए हैं। स्किल्ड वर्कर वीजा के लिए न्यूनतम सैलरी सीमा 38,700 पाउंड से बढ़ाकर 41,700 पाउंड कर दी है। जनवरी 2024 से लागू नए नियमों के चलते छात्र अब अपने जीवनसाथी और बच्चों को आसानी से साथ नहीं ला पा रहे हैं। दिसंबर 2023 से जुलाई 2025 के बीच डिपेंडेंट वीजा में 86 फीसदी की गिरावट आई। हेल्थ एंड केयर वर्कर्स के लिए भी हालात मुश्किल हैं। जुलाई 2025 से विदेशी भर्ती पर प्रतिबंध और कंपनियों की सख्त जांच के चलते आवेदनों में भारी कमी आई। छात्रों के लिए वर्क वीजा की अवधि भी घटाकर 18 महीने कर दी गई है, जो पहले दो साल की हुआ करती थी। विशेषज्ञों का मानना है कि ये नीतियां ब्रिटेन के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती हैं, क्योंकि भारतीय वर्कर्स और छात्र यहां की अर्थव्यवस्था और यूनिवर्सिटीज दोनों में अहम योगदान देते हैं। बदलते हालातों की वजह से भारतीय अब जर्मनी जैसे अन्य यूरोपीय देशों का रुख कर रहे हैं, जो ब्रिटेन की शिक्षा और रोजगार प्रणाली के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।

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