Comfort Stations में महिलाओं के साथ की जाती थी क्रूरता
टोक्यो। जापानी सेना द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कंफर्ट वूमन की व्यवस्था एक अत्यंत क्रूर और अमानवीय कृत्य था। कंफर्ट वूमन जापानी सैनिकों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए बाध्य थीं। युद्ध के दौरान यह प्रथा कोरिया, चीन, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और अन्य प्रशांत द्वीपों तक फैल गई। इस घिनौनी प्रथा की शुरुआत 1932 में चीन-जापान युद्ध के दौरान हुई, जब जापानी सेना ने अपनी छावनियों में सैनिकों के लिए कंफर्ट स्टेशन स्थापित किए। हजारों महिलाओं को जबरन भर्ती किया गया, जिनमें से अधिकतर गरीब परिवारों से थीं। इन्हें या तो धोखे से नौकरी के झूठे वादे देकर फंसाया गया या फिर अपहरण कर लिया गया। खासतौर पर कोरिया, चीन और मलय क्षेत्रों की लड़कियों को ‘कम्फर्ट गर्ल्स’ के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। कंफर्ट स्टेशनों में महिलाओं के साथ क्रूरता की सारी हदें पार कर दी जाती थीं। उन्हें प्रतिदिन कई सैनिकों के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता था। उनकी कोई स्वतंत्रता नहीं थी और कई बार उन्हें प्रताड़ित कर मारा भी जाता था। असुरक्षित यौन संबंधों के कारण वे गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाती थीं और कई बार जबरन गर्भपात करवाया जाता था।
भागने की कोशिश करने वाली महिलाओं को भयानक दंड दिया जाता था, जिसमें उन्हें बेरहमी से पीटा या मार दिया जाता था। जापानी सेना ने अपने कब्जे वाले कई क्षेत्रों में कंफर्ट स्टेशन बनाए। चीन के नानजिंग, बीजिंग और शंघाई जैसे शहरों में बड़े स्तर पर ये केंद्र थे। कोरिया में जापानी शासन के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं को यौन दासता में धकेला गया। फिलीपींस, बर्मा (म्यांमार), थाईलैंड, वियतनाम और इंडोनेशिया में भी इस घिनौने कृत्य को अंजाम दिया गया। इसके अलावा, ताइवान, गुआम और साइपन जैसे प्रशांत द्वीपों में भी जापानी सेना के लिए कंफर्ट स्टेशन स्थापित किए गए थे। ‘कंफर्ट वूमन’ की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध का एक काला अध्याय है, जिसने हजारों महिलाओं की जिंदगी तबाह कर दी।
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