बदल गई war की परिभाषा, अब जमीन पर नहीं आसमान में होती है लड़ाई
रूस-यूक्रेन जंग में हो रहा हाईटेक ड्रोन और एआई तकनीक का इस्तेमाल
मास्को। अब युद्ध की परिभाषा बदल चुकी है। आज की लड़ाई आसमान में, ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक के दम पर लड़ी जा रही है। ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना ने साफ कर दिया है कि भविष्य में जीत उसकी होगी, जिनके पास हवा में वार करने की बेहतर तकनीक होगी। ऐसा ही एक उदाहरण यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष में देखने को मिला, जहां दोनों देश अब हाईटेक ड्रोन और एआई आधारित हथियारों से एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं। यूक्रेन के ऑपरेशन स्पाइडर वेब ने रूस को भारी नुकसान पहुंचाया, जिसके बाद रूस ने भी अपने तकनीकी शस्त्रागार को और मजबूत करना शुरू कर दिया। इसी कड़ी में उसने हाल ही में एक नया एआई ड्रोन वी2यू तैनात किया है। इस ड्रोन की खासियत यह है कि इसे टारगेट बताने की ज़रूरत नहीं, यह अपने लक्ष्य की पहचान खुद करता है और उस पर हमला करता है। यूक्रेन की खुफिया एजेंसी के मुताबिक वी2यू में एक चीनी लीटॉप ए203 मिनी पीसी लगा है जो एनवीआईडीआईए की जेटसन ऑरिन चिप पर आधारित है। इस ड्रोन में लगे ज्यादातर पार्ट्स चीन से मंगाए गए हैं। ड्रोन में लाइव कैमरा तकनीक लगी है, जो जमीन की तस्वीरों को पहले से स्टोर की गई इमेज से मिलाकर टारगेट की पहचान करता है।
जब तस्वीरें मेल खा जाती हैं, तो वह अपने आप हमला कर देता है। यूक्रेन का कहना है कि रूस अब हर महीने करीब 5,000 लंबी दूरी के ड्रोन बना रहा है, जबकि अगस्त 2024 में यह संख्या महज 500 थी। यूक्रेन का दावा है कि रूस के पास अभी भी बड़े स्तर पर ड्रोन निर्माण की स्वदेशी क्षमता नहीं है। उसके ड्रोन के 80 फीसदी से ज्यादा पुर्जे चीन से आयात किए जाते हैं। यूक्रेन के मुताबिक रूस का पूरा ड्रोन कार्यक्रम चीन की सप्लाई पर निर्भर है और चीन अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद रूस को मिलिट्री ग्रेड टेक्नोलॉजी दे रहा है। हालांकि यह भी सच्चाई है कि रूस के पास पहले से ही अत्याधुनिक हथियारों का बड़ा जखीरा है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले समय में यह युद्ध और भी घातक रूप ले सकता है, जहां इंसान नहीं, बल्कि मशीनें युद्ध का फैसला करेंगी।
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