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  • Tuesday, 23 December 2025
Deepu's murder case: पुलिस बोली देर से सूचना मिली, नहीं तो बचा लेते जान

Deepu's murder case: पुलिस बोली देर से सूचना मिली, नहीं तो बचा लेते जान

ढाका। 18 दिसंबर को जिस तरह हिंदू युवक दीपू चंद्र दास (25) की हत्या हुई उसने पूरी दुनिया को हिला दिया है। दोष सिर्फ इतना था वो हिंदू था। उस पर धर्म के खिलाफ बोलने का आरोप लगाया और भीड़ ने उसे मार डाला। जबकि जांच में ऐसा कुछ भी नहीं पाया गया। अब बांग्लादेश पुलिस सफाई देती फिर रही है कि देर से सूचना मिली थी इसलिए समय रहते नहीं पहुंच पाए वरना उसकी जान बचा लेते। बांग्लादेश के मयमनसिंह जिले में 18 दिसंबर की रात को एक हिंदू युवक दीपू चंद्र दास (25) की भीड़ द्वारा क्रूर हत्या की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। दीपू एक गारमेंट फैक्ट्री में मजदूर थे, जहां कुछ श्रमिकों ने उन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया। बिना किसी ठोस सबूत के भीड़ ने उन्हें फैक्ट्री से बाहर खींचकर बुरी तरह पीटा, पेड़ से बांधा और जिंदा जला दिया। घटना शाम 5 बजे से शुरू हुई जब फैक्ट्री में विरोध प्रदर्शन हुआ। आरोप लगाने वालों का दावा था कि दीपू ने इस्लामी भावनाओं को आहत किया, लेकिन जांच में अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला। स्थानीय लोगों ने भी कहा कि उन्होंने दीपू को ऐसा कोई बयान देते नहीं सुना। फिर भी भीड़ बढ़ती गई और शाम 9 बजे के आसपास हमला शुरू हो गया। हमलावरों ने शव को ढाका-मयमनसिंह रोड पर ले जाकर आग लगा दी।पुलिस का कहना है कि उन्हें सूचना देर से मिली। रात 8 बजे के बाद जानकारी मिलने पर वे पहुंचे, लेकिन तब तक भीड़ सैकड़ों की संख्या में थी और सड़क पर 10 किलोमीटर लंबा ट्रैफिक जाम था।

पुलिस अधिकारी ने बताया कि अगर समय पर सूचना मिल जाती तो युवक को बचाया जा सकता था। फैक्ट्री प्रबंधन ने दावा किया कि वे अपने स्तर पर स्थिति संभालने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन असफल होने पर पुलिस को सूचित किया। फैक्ट्री के एक मैनेजर ने दीपू का फर्जी इस्तीफा भी तैयार किया और कहा कि उसे निकाल दिया गया, लेकिन भीड़ नहीं मानी। यह घटना बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर बढ़ती हिंसा की गंभीर चिंता पैदा कर रही है। जांच जारी है, लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। हिंदू युवक दीपू चंद्र दास पर हमले शुरू कर दिए गए। अब तक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे यह साबित हो सके कि दीपू चंद्र दास ने किसी की भावनाओं को आहत किया था। फिर भी उन्हें बेरहमी के साथ मार डाला गया। यहां तक कि फैक्टरी के एक मैनेजर आलमगीर हुसैन ने दीपू का एक फर्जी इस्तीफा भी तैयार कर लिया था और कहा कि उसे हटा दिया गया। फिर भी भीड़ नहीं मानी और दीपू पर हमले शुरू कर दिए। पुलिस को फैक्ट्री मैनेजमेंट की ओर से जानकारी देने में देरी क्यों हुई। इस पर मैनेजरों ने कहा कि हम अपने स्तर पर लोगों को शांत करना चाहते थे, जो नहीं हो सका। इसी में पुलिस को जानकारी देने में देरी हो गई।

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