Pakistan से आई सुखद खबर, अब मुस्लिम छात्रों ने दिखाई संस्कृत में दिलचस्पी
बंटवारे के बाद पहली बार पंजाब प्रांत की दो यूनिवर्सिटीज ने पढ़ाई जाएगी संस्कृत
इस्लामाबाद। भारत और पाकिस्तान के बीच भले ही राजनीतिक तनाव हो, लेकिन साझा विरासत की एक नई और सुखद तस्वीर सामने आई है। 1947 के बंटवारे के बाद पहली बार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की दो यूनिवर्सिटीज ने संस्कृत भाषा में शॉर्ट कोर्स शुरू किया है। इतना ही नहीं, भविष्य में वहां के छात्रों को हिंदू धर्मग्रंथ ‘गीता’ और ‘महाभारत’ पढ़ाने की भी योजना है। यह पहल लाहौर की सरकारी ‘पंजाब यूनिवर्सिटी’ और निजी संस्थान ‘लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज’ ने की है। दोनों संस्थानों ने इस शास्त्रीय भाषा का कोर्स लॉन्च किया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक साझा विरासत और पुरानी पांडुलिपियां इस कोर्स को शुरू करने के पीछे मुख्य वजह ‘साझा विरासत’ को सहेजना और पंजाब यूनिवर्सिटी में मौजूद संस्कृत की पुरानी पांडुलिपियों को पढ़ना है। पंजाब यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि तैयारियां पिछले साल शुरू हुई थीं, लेकिन पहला एडमिशन 2025 में हुआ। सबसे पहले एलयूएमएस ने बेसिक लेवल-1 और 2 शुरू किया, जिसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी ने भी इसे अपनाया। प्रोफेसर कुमार ने बताया कि 1947 के विभाजन के बाद, यहां शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति बचा था जो इस शास्त्रीय भाषा को पढ़ा सके।
उन्होंने बताया कि पंजाब यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में संस्कृत के अभिलेखागार का एक समृद्ध खजाना है, लेकिन उसका अध्ययन सबसे कम हुआ है। अब तक कोई भी स्थानीय व्यक्ति इसका उपयोग नहीं कर रहा था। संस्कृत सीखकर छात्र इस क्षेत्र के प्राचीन इतिहास को नई नजर से देख पाएंगे। उन्होंने बताया कि यह कोर्स अभी भाषा की बेसिक जानकारी देता है। संस्कृत पर पकड़ बनाने के लिए एक छात्र को सात स्तर पूरे करने होंगे, जिसमें कम से कम तीन साल लगेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि भविष्य में यूनिवर्सिटी तीन साल का फुल-फ्लेज्ड कोर्स शुरू कर सकती है। अगर ऐसा होता है, तो तीन साल के कोर्स के बाद छात्र मूल ‘गीता’ और ‘महाभारत’ पढ़ने और समझने में सक्षम हो जाएंगे। फिलहाल पंजाब यूनिवर्सिटी में 3 और एलयूएमएस में करीब आठ छात्र संस्कृत कोर्स में एनरोल हुए हैं। सबसे खास बात यह है कि संस्कृत सीखने के लिए दाखिला लेने वाले ज्यादातर छात्र मुस्लिम हैं, जो इस भाषा को सीखने में गहरी रुचि दिखा रहे हैं। यह पहल अकादमिक जगत में एक नई शुरुआत मानी जा रही है।
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