18 साल बाद भी भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार नहीं ले सका मूर्त रूप
वाशिंगटन। 18 साल से अधिक समय के बाद भी भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता मूर्त रुप नहीं ले सका है। इसके पीछे अनेक कारण बताए जा रहे हैं। एक शीर्ष अमेरिकी विशेषज्ञ ने कहा है कि टाटा चेयर फॉर स्ट्रेटेजिक अफेयर्स और प्रतिष्ठित ‘कार्नेगी एनडाऊमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ के वरिष्ठ शोधवेत्ता एशले जे टेलिस ने कहा कि भारत ने अभी तक उन बाधाओं को दूर नहीं किया है जो अमेरिका से परमाणु रिएक्टरों की खरीद को रोकती हैं, वहीं अमेरिका दूरदर्शिता के साथ नीति पर खरा नहीं उतर सका है। उन्होंने ‘कार्नेगी एनडाऊमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ के सोमवार को प्रकाशित मुखपत्र में लिखा कि 2005 में हुए असैन्य परमाणु समझौते को अंततः लागू करने की अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की महत्वाकांक्षा भारत को अमेरिकी परमाणु रिएक्टरों की बिक्री के साथ खत्म नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि इसके बजाय लंबे समय से चली आ रहीं अमेरिकी नीतियों में संशोधन होने तक विचार करना चाहिए जो भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम के अस्तित्व को गहन तकनीकी सहयोग कर सके।
इस पर टेलिस ने कहा कि जहां तक भारत की बात है तो वह परमाणु करार के लागू होने के दौरान की गईं लिखित प्रतिबद्धताओं के अनुरूप उन अवरोधों को लंबे समय से दूर नहीं कर पाया है जो अमेरिका से परमाणु रियेक्टरों की उसकी खरीद को रोक रहे हैं। जहां तक अमेरिका की बात है तो एक अलग ही तरह की चुनौती है कि वह दूरदर्शिता के साथ नीतियों पर खरा नहीं उतर रहा। उन्होंने कहा कि बाइडन की सितंबर में हुई भारत यात्रा के बाद संयुक्त घोषणापत्र में कहा गया कि दोनों नेताओं ने परमाणु ऊर्जा में भारत-अमेरिका सहयोग को सुविधाजनक बनाने के अवसरों का विस्तार करने के लिए दोनों पक्षों की संबंधित संस्थाओं के बीच गहन विचार-विमर्श का स्वागत किया, जिसमें सहयोगात्मक रूप से अगली पीढ़ी के छोटे मॉड्यूल भी शामिल किए गए है।
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